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Tuesday, December 4, 2018

Argemone mexicana, सत्यानाशी

सत्यानाशी,Argemon



भड़भाड़सत्यानाशी या घमोई एक अमेरिकी वनस्पति है, लेकिन भारत में यह सब स्थान पर पैदा होती है। प्राचीन ग्रंथों में इसे स्वर्णक्षीरी  भी कहा गया है अंग को तोड़ने से उसमें से स्वर्ण सदृश, पीतवर्ण (पीले रंग) का दूध निकलता है, इसलिए इसे स्वर्णक्षीरी भी कहते है। सत्यानाशी का फ़ल चौकोर, कंटकित, प्यालानुमा होता है, जिनमें राई की तरह छोटे-छोटे कृष्ण बीज भरे रहते हैं, जो जलते कोयलों पर डालने से भड़भड़ बोलते हैं। उत्तर प्रदेश में इसको भड़भांड़ या भड़भड़वा भी कहते है। वनस्पति के सारे पौंधों पर काटें होते है।आयुर्वेदिक ग्रंथ 'भावप्रकाश निघण्टु' में इस वनस्पति को स्वर्णक्षीरी या कटुपर्णी के नाम से लिखा है[1]
इसके बीज जहरीले होते हैं। कभी-कभी सरसों में इसे मिला देने से उसके तेल का उपयोग करने वालों की मृत्यु भी हो जाती है।आयुर्वेदिक ग्रंथ 'भावप्रकाश निघण्टु' में इस वनस्पति को स्वर्णक्षीरी या कटुपर्णी कहा गया है I
विभिन्न भाषाओं में  इसे भिन्न नामों से जाना जाता है
अंग्रेजी मेंArgemone mexicana (Mexican poppy, Mexican prickly poppy, flowering thistle, cardo or cardosanto)
संस्कृत मेंकटुपर्णी, कान्चक्षीरी, स्वर्णक्षीरी, पीतदुग्धा
हिंदी मेंस्याकांटा, भड़भांड, सत्यानाशी, पीला धतूरा, फिरंगीधतूरा
मराठी मेंमिल धात्रा, काटे धोत्रा 'बिलायत'
गुजराती मेंदारूड़ी
पंजाबी मेंसत्यानाशी, कटसी, भटकटैया करियाई
बंगाली मेंशियालकांटा, सोना खिरनी
तमिल मेंकुडियोटि्ट, कुश्मकं
सत्यानाशी का विंभिन्न राेगो में उपयोग।
•Satyanashi Plant / आर्युवेद में सत्यनाशी पौधा एक बहुउपयोगी औषधि रूप है। सत्यनाशी यानि कि सभी प्रकार के रोगों का नाश करने वाला खास वनस्पति। सत्यनाशी पौधा बंजर, नदी किनारे, जगलों, खाली जगहों में पाये जाते हैं। सत्यनाशी पौधा लगभग 3 फीट तक लम्बा होता है। फूल पीले और पत्ते हरे तेज नुकीले होते हैं। और बीज सरसों दानों की तरह होते हैं। कोमल पत्ते-तने तोड़ने पर दूध जैसा तरल निकलता है। सत्यनाशी पौधा भारत में लगभग सभी राज्यों में पाया जाता है। जिसे अलग-अलग नामों  स्वर्णक्षीरी, कटुपर्णी, पीला धतूरा, स्याकांटा, फिरंगीधूतरा, भड़भांड़, काटे धोत्रा, मिल धात्रा, दारूड़ी, चोक, कटसी, भटकटैया पौधा, सोना खिरनी, कुश्मक, शियालकांटा, कुडियोटिट, और अंग्रेजी में Argemone mexicana, Prickly Poppy, Mexican Poppy, Satyanashi से पुकारा जाता है।

 सत्यनाशी औषधि और तेल रूप में इस्तेमाल किया जाता है।




•चोट घाव में सत्यनाशी पौधा / Topical Pain Relief for Wounds
चोट घाव ठीक करने में सत्यनाशी फूल, पत्तियों का रस अचूक औषधि मानी जाती है। सत्यनाशी फूल पत्तियों का रस घाव जल्दी भरने में सहायक और घाव को संक्रमित होने से बचाने सहायक है।

•पीलिया में सत्यनाशी / Jaundice Cure, Satyanashi
पीलिया रोग होने पर आधा चम्मच सत्यनाशी तेल गन्ने जूस के साथ पीने से पीलिया से जल्दी छुटकारा मिलता है। साथ में मूली पत्तियों की सब्जी खायें।

•दमा रोग में सत्यनाशी / Asthma Relief
सत्यनाशी फूल, कोमल पत्तों से कांटे अलग करे, फिर फूल और कांटे बिने पत्तों को बरीक पीसकर फंक बना लें। रोज सुबह शाम सत्यनाशी आधा चम्मच से कम फंक गर्म पानी के साथ सेवन करने से दमे की खांसी से जल्दी आराम मिलता है। और 1 चम्मच सत्यनाशी तेल मिश्री, गुड़ के साथ खाने से दमा रोग से जल्दी छुटकारा मिलता है।

•कुष्ठ रोग रोकथाम में सत्यनाशी / Cure Leprosy
कुष्ठ रोग फैलने से रोकने में सत्यनाशी सहायक है। सत्यनाशी के फूल, पत्तों और नींम के पत्तों को बारीक कूटकर पानी में उबालें। फिर पानी गुनगुना ठंड़ा होने पर नहायें। आधा चम्मच सत्यनाशी फूल रस दूध के साथ सेवन करें। सत्यनाशी तेल खाने में इस्तेमाल, और कुष्ठ ग्रसित त्वचा पर लगायें। सत्यनाशी पौधा कुष्ठ रोगी के लिए फायदेमंद है।

•जलोदर में सत्यनाशी / Ascitic Tap, Ascites Remedies
Ascitic / जलोदर (पेट, फेफड़ों, शरीर अंगों में पानी भरने पर) समस्या सत्यनाशी असरदार औषधि मानी जाती है। सत्यनाशी के फूल, पत्तों, तनों का ताजा 1-1 चम्मच रस नित्य सुबह शाम सेवन करने से जलोदर समस्या जल्दी ठीक करने में सहायक है। 1 चम्मच सत्यनाशी तेल चुटकी भर सेंधा नमक 1 गिलास गुनगुने पानी के साथ रोज पीयें। और सत्यनाशी पत्तों, तनों से निकला दूध गाय के दूध के साथ मिश्रण कर सेवन करें। शरीर अंगों में पानी भरने पर सत्यनाशी पौधा असरदार घरेलू औषधि है। मैं जलोधर में सत्यानाशी घन , जलोधरारि रस , नारायण चूर्ण के साथ देता हुं।

•आंखों के विकारों के लिए सत्यनाशी / Home Remedies, Itchy Eyes, Eyesight
नजर कमजोर होने पर, मोतियाबिन्दु होने पर सत्यनाशी के दूध को मिश्री, कच्चे दूध के साथ सेवन करना फायदेमंद है। सत्यनाशी दूध और ताजा मक्खन या फिर गाय के घी के साथ मिलाकर आंखों पर सुरमे – काजल की तरह लगाने से अंधापन्न, रतौंदी, आंखों जलन समस्या दूर करने में सहायक है। मैं सत्यानाशी का दूध ताजा डलवाता हुं साथ में आँवला मुरब्बा , सप्ताम्रत लौह के साथ खिलाता हुं।

•मुंह के छालों में सत्यनाशी / Mouth Ulcer Cure
मुंह में छालों की समस्या में सत्यनाशी कोमल डठंल, पत्तियां चबायें। और 10-15 मिनट बाद दही मिश्री खायें। नमक, मिर्च, तीखा खाने से बचें। सत्यनाशी से मुंह के छालों के जलन दर्द में ठंडक शीलता मिलती है। मुंह के छालें तुरन्त ठीक करने में सत्यनाशी, दही मिश्री सहायक है।

•तुतलाने-हकलाने पर सत्यनाशी  / Stutter, Semantics, Stammering Cure
हकलाने तुतलाने की समस्या में सत्यनाशी पत्तों – तनों के दूध को जीभ कर लगाना फायदेमंद है। और सत्यनाशी पत्तों का रस बरगद के पत्तों पर लगाकर हल्का 5-7 मिनट सुखायें। फिर खाने के दौरान थाली की जगह बरगद के पत्तों का इस्तेमाल करें। और बरगद के पत्तों पर लगे सत्यनाशी रस पर शहद लगाकर चाटने से बच्चों की तुतलाने-हकलाने की समस्या जल्दी ठीक करने में सहायक है। इसके साथ ब्राह्मी वटी , वृहत वात चिंतामणि रस का सेवन करें , बहुत लाभ होगा।

•बवासीर में सत्यनाशी / Hemorrhoids Cure, Remedies
बवासीर को ठीक करने में सत्यनाशी एक खास औषधि रूप है। सत्यनाशी जड़, चक्रमरद बीज और सेंधा नमक बारीक पीसकर चूर्ण तैयार कर लें। रोज सुबह शाम चुटकी भर सत्यनाशी मिश्रण चूर्ण दही के साथ खाने से बवासीर घाव ठीक करने और बवासीर जड़ से मिटाने में सहायक है। सत्यनाशी जड़, चक्रमरद बीज और सेंधा नमक मिश्रण गुड़ पानी के साथ भी सेवन कर सकते हैं।
साथ में कांकायन वटी , सूरनकंद,सलाद ,अर्शकुठार रस का सेवन भी कर सकते है।

•दांतों के लिए सत्यनाशी / God for Teeth
दांतों में कीड़ा लगने पर सत्यनाशी तने और नींम तने से लगातार रोज दांतून करने से दांतों के कीड़ा, दांत दर्द से जल्दी छुटकारा मिलता है। दांतों के लिए सत्यनाशी तना और नींम तना से एक साथ मिलाकर दांतुन करना खास फायदेमंद है।

•गैस कब्ज में सत्यनाशी / Gas, Acidity, Stomach Pain, and Badjhmi Relief
गैस कब्ज समस्या में सत्यनाशी जड़ और अजवाइन उबालकर काढ़ा तैयार कर लें। रोज सुबह शाम सत्यनाशी काढ़ा पीने से गैस कब्ज की समस्या मात्र 10-15 दिनों में ठीक करने में सहायक है। हिंग्वाष्टक चूर्ण , गैसहर चूर्ण , लवणभास्कर भी ले सकते है।

पेट कीडे साफ करे सत्यनाशी  / Home Remedies for Intestinal Worms
पेट में कीड़ों की समस्या होने पर सत्यनाशी जड़ और आधे से थोड़ा कम मात्रा में कलौंजी मिलाकर पीसकर फंक गुनगुने पानी के साथ पीने से पेट के कीड़े शीध्र नष्ट करने में सहायक है। कृमीकुठार रस , कृमिमुदगर रस , कमीला दही में मिलाकर भी प्रयोग किया जा सकता है।

•खाज खुजली में सत्यनाशी / Ringworm Remedies
सत्यनाशी बीज और सत्यनाशी दूध मिश्रण कर ग्रसित खाज खुजली वाली त्वचा पर लगाने से जल्दी आराम मिलता है। सत्यनाशी फूल पत्तों का आधा-आधा चम्मच रस रोज सुबह शाम पीयें। खाज खुजली ठीक करने में सत्यनाशी फायदेमंद है। सत्यानाशी घन , स्वादिष्ट विरेचन चूर्ण, पंचतिक्तघृत गुगल के साथ प्रयोग कर सकते है।

•गठिया जोड़ों के दर्द में सत्यनाशी तेल / Essential Oils for Rheumatoid Arthritis
सत्यनाशी तेल में लहसुन पकाकर अच्छे से मालिश मसाज करने से गठिया जोड़ों के दर्द में असरदार दर्द निवारण है।

•पुरूर्षों महिलाओं की अन्दुरूनी कमजोरी दूर करे सत्यनाशी / Natural Ways to Boost Your Libido
पुरूर्षों महिलाओं दोनों की अन्दुरूनी गुप्त बीमारी नपुंसकता, धातुरोग, वीर्य कमजोरी, शुक्राणुओं की गड़बड़ी और निसंतान कलंक दूर करने में सत्यनाशी पौधा एक अचूक प्राचीनकालीन औषधि है। महिलाओं पुरूर्षों के गुप्त रोगों में सत्यनाशी के फूल रस, पत्तियों का रस  आधा चम्मच सुबह शाम कच्चे दूध के साथ सेवन करना फायदेमंद है। सत्यनाशी बीज तेल से मालिश और 50 ग्राम सत्यनाशी जड़ों 1 लीटर पानी में हल्की आंच में उबाल कर काढ़ा तैयार करें और रोज सुबह शाम 2-2 चम्मच पीने से जल्दी फायदा होता है। निसंतान दंम्पतियों के लिए सत्यनाशी पौधा अचूक औषधि मानी जाती है। पुरूर्षों महिलाओं के लिए सत्यनाशी Libido Boosters  है। ज्यादा लाभ के लिए आप मेरे क्लीनिक पर ‌तैयार होने वाले नुस्खे जैसे महासागर वटी , तूफानी ताकत महायोग अड़वास , तूफानी ताकत महायोग, जीवन जौश महायोग , शाही महायोग आदि अपनी जरूरत, बलाबल अनुसार  डाक/कोरियर द्वारा लें सकते है।

•लिंग कमजोरी दूर करे सत्यनाशी तेल मालिस / Penic Enlargement Oil
सत्यनाशी बीज तेल मालिस मसाज पुरूर्षों की लिंग स्थिलिता कमजोरी दूर करने में खास सहायक है। सत्यनाशी तेल मालिस कमजोर नसों में रक्त संचार तीब्र और सुचारू बनाये रखने में और लिंगवर्धक में सक्षम है। ज्यादा लाभ हेतू मेरे क्लीनिक पर तैयार लिंगदोष नाशक तिला , लेप आदि डाक/कोरियर द्वारा मंगवा सकते है।

•पेशाब जलन में सत्यनाशी / Good for Urinary Tract Infection
पेशाब में जलन, संक्रामण होने पर सत्यनाशी जड़ों को उबालकर काढ़ा तैयार कर लें। रोज सुबह शाम पीने से पुरानी से पुरानी पेशाब जलन – दर्द समस्या दूर करने में सहायक है।इसके साथ आप चंद्रप्रभा वटी, चंदनासव का प्रयोग भी कर सकते है।

सावधानियां / Satyanashi Disadvantages
सत्यनाशी सेवन गर्भावस्था के दौरान मना है।
गम्भीर सर्जरी में सत्यनाशी सेवन मना है।
सत्यनाशी सेवन 2 साल से छोटे बच्चों के लिए मना है।

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Tuesday, October 23, 2018

अतिबला एक औषधि





Abutilon indicum ( भारतीय मॉलो) Malvaceae परिवार में एक छोटा सा सदस्य है, यह उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों के मूल निवासीयो  द्वारा उगाया जाता है और कभी-कभी एक सजावटी पोधे के रूप में इसकी खेती की जाती है।
इसकी लम्बाई 1 se 4 मीटर, पिले रंग के पुस्प, पत्तिया ओर पोधे हलके हरे रंग के होते हैं l फल एक टायर के आकार का होता हैं जिसके अन्दर तिल के सदर्श बीज पाए जाते हैं l


यह तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हरियाणा, बिहार और भारत के दूसरे क्षेत्रो व एशिया के अन्य क्षेत्र में पाया जाता है। यह एक जंगली पोधा है जो पास की सड़क किनारे , नदी के पास और जंगल में पाया जाता है।

कभी -कभी यह छोटे तालाब के पास, गन्दी नाली के नजदीक घर के आउटडोर पर पाया जाता है लेकिन पहचान की कमी के कारण आम लोगों द्वारा इसका उपयोग  नहीं किय़ा जता

मेने कई बार अतिबला के बारे में पढ़ा गया , और इसे खोजने के बाद, पहली बार जब मैं इसे पहचानता था तो मैं आश्चर्यचकित था! इसके बारे में अधिक जानकारी ली । और मैं आश्चर्यचकित हूं कि लोग ईस प्राकार के दुर्लभ और मह्त्वपूर्ण पोधे के बारे में बिना जानकारी लिए बेकार समझ कर उखाड़ देते हैं, या रसयनिको के बहुत ज़्यादा पर्योग के कारण ये विलुप्त होते जा रही हैं l

आयुर्वेद में अतीबाला  एक महत्वपूर्ण दवा है। भारतीय ग्रंथो में विभिन्न नामों से नामों से जाना जाता है, जो-

विभिन्न भाषाओं में नाम:

अंग्रेजी नाम: देश मॉलो, भारतीय मॉलो

हिंदी नाम - कंगी, काकाही

संस्कृत - अतीबाला

कन्नड़ नाम - तुती

तेलुगू नाम - तुत्तुरु बेंडा, दुवेनकाया, दुवेना कायलू

तमिल नाम - पेरुम तुती, पनीयार हुट्टी, खंड - थूथी

बंगाली नाम - पेटारी, झापी

मराठी नाम - मुद्रा

गुजराती नाम - खापत, दबाली, कामसाकी

मलयालम नाम - वेल्लुला

अरब नाम - मस्थुल गोला

फारसी नाम - दरखाष्टन




चिकित्सा महत्व के आधार पर यह पोधा बहुत उपयोगी है। यह एंटीऑक्सीडेंट, एंटीडिबेटिक और एंटी सेप्टिक उचितता से भरा होता करसके जड़, पत्ते तथा फूलो का उपयोग विभिन्न रोगो के उपचार में किय़ा जाता हैं क्योकि ये निम्नलिखित गुनो से परिपूर्ण होता हैं

एंटीऑक्सीडेंट: इसके बीज, मुक्त कणों और अन्य पदार्थों के ऑक्सीडेंट प्रभाव को निष्क्रिय कर देते हैं
सुजन शामक : पत्तियां, शरीर पर आयी सूजन को कम कर देतीं हैं ।

Antifungal: पत्तियां, फंगल संक्रमण ( त्वचा रोग) को रोकता है।

एनाल्जेसिक: जड़ें, दर्द से छुटकारा पाएं।

मिर्गी या आवेग : मिर्गी  या अन्य आवेगों की गंभीरता को रोकता है, रोकता है या कम करता है।

एंटी-डायरियल: पत्तियां, दस्त में राहत देती है।

एंटीडाइबेटिक: पत्तियां, मधुमेह के स्तर को नियंत्रित करती है।

एंटी-एस्ट्रोजेनिक: एस्ट्रोजन प्रतिद्वंद्वी।

Demulcent: बीज-पत्तियां, सूजन या जलन से राहत।

मूत्रवर्धक: बीज-रूट निकालने, मूत्र / एजेंट के विसर्जन को बढ़ावा देना जो मूत्र की मात्रा को बढ़ाता है।

हेपेटोप्रोटेक्टिव: पूरे संयंत्र, यकृत को नुकसान से रोकें।

Hypoglycemic: पत्तियां, रक्त में चीनी ग्लूकोज के स्तर को कम करने।

Immunomodulatory: पत्तियां, प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया या प्रतिरक्षा प्रणाली के कामकाज को संशोधित करता है।

रेचक: बीज-पत्तियां, आंत्रों को निकालने या उत्तेजित करने में सहायता करते हैं।

लिपिड कम करना: पत्तियां, लिपिड कम करती है

इसमें विभिंन प्राकार के रसायनिक तत्त्व पाए जाते हैं
प्रमुख रासायनिक गठन हैं -

हेस्कोज़, एनएन-अल्केन मिश्रण, एलकनोल, बी सीटैस्टरोल, वैनििलिक, पी-क्यूमरिक, एसीसीक, फ्यूमरिक और एमिनो एसिड, एलान्टालोक्टोन, आईएसओ एलेंटोलैक्टोन इत्यादि।

इस पौधे को अक्सर औषधीय पौधे के रूप में प्रयोग किया जाता है और इसे कुछ उष्णकटिबंधीय द्वीपों पर आक्रामक माना जाता है। इसकी जड़ों और पत्तियों का उपयोग बुखार को ठीक करने के लिए किया जाता है।

आचार्य चरक ने बुखार, कमजोरी और संयुक्त समस्याओं के लिए पूरे पोधे का निष्कासन  किय़ा । इसे स्वास्थ्य को बढ़ावा देने और बीमारियों को दू र रखने के लिए रसयान के रूप में प्रयोग किया जाता था। यह घावों, अल्सर और योनि संक्रमण का इलाज करता है।

जड़ और छाल का उपयोग एफ़्रोडायसियाक, एंटी-डाइबेटिक, मस्तिस्क टॉनिक और मूत्रवर्धक के रूप में किया जाता है। उनके पास मूत्रवर्धक और एंथेलमिंटिक गुण होते हैं। जड़ों बुखार को कम करता है, नसों की कमजोरी को कम करता है और मूत्र संबंधी समस्याओं में मदद करता है। यह न्यूरोलॉजिकल विकारों (हेमिप्लेगिया, चेहरे की पक्षाघात, कटिस्नायुशूल) और दुर्बलता के लिए दिए जाते हैं।

अतीबाला एक पौष्टिक, शक्ति है जो रसयान और भ्रूण वृद्धि को बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहित करती है। गर्भवती महिलाओं में अतीबाला (अबुटिलोन इंडिकम) की भूमिका निभाने के लिए एक अध्ययन किया गया था, जिसमें कैमरब्रिटी प्रसूति श्री रोगा इंस्टिट्यूट ऑफ पोस्ट ग्रेजुएट टीचिंग रिसर्च इंस्टिट्यूट ऑफ पोस्ट ग्रेजुएट टीचिंग एंड रिसर्च गुजरात आयुर्वेद युनिवर्सिटी जामनगर द्वारा बार-बार गर्भपात के इतिहास के साथ गर्भपात करने वाली महिलाओं में। हुए परिवर्तन को तथा गर्भपात keके बाद गर्भधारण में गढ़स्थपका प्रभाव और गर्भा वृद्धिकारा प्रभाव के लिए एक दवा के रूप में अतीबाला के प्रभाव के बारे में पता लगाने के लिए डिजाइन किया गया था। दूसरी और तीसरी तिमाही की 60 गर्भवती महिलाओं को शामिल किया गया था और उन्हें दो समूहों में बांटा गया था।


अतीबाला का प्रभाव अमालाकी, गोदंथी और गर्भपालरासा (अमालाकी समूह) के संयोजन की तुलना में किया गया था। इलाज के दौरान या गर्भपात के बाद अतीबाला और अमालाकी समूहों के नतीजों का अध्ययन किय़ा गया

अध्ययन में निष्कर्ष निकाला गया कि अती बाला (अबुटिलॉन इंडिकम) पाउडर गर्भवती महिलाओं में अमलाकी, गोदंथी बस्मा और गर्भपाला रस के पाउडर की तुलना में भ्रूण के विकास के लिए अत्यधिक प्रभावी है, जिन्होंने गर्भस्थपका (गर्भावस्था के रखरखाव के लिए फायदेमंद) और गर्भा वृद्धायक प्रभाव के कारण गर्भपात की पिछली बार गर्भपात की है। (भ्रूण विकास को बढ़ावा देना)।

महत्वपूर्ण फॉर्मूलेशन

अतीबाला आम तौर पर वायुविधि (वता दोष के कारण होने वाली बीमारियों) जैसे गठिया, संधिशोथ, चेहरे की पाल्सी, पैरापेलेगिया आदि में मालिश के लिए बाहरी रूप से आयुर्वेदिक औषधीय तेल की तैयारी में एक घटक का उपयोग किया जाता है।
महानारायन तेल
नारायण तेल
बला वटी आदि
Rahul sharma

Saturday, October 20, 2018

Abutilon indicum (Atibala herb)


          Abutilon indicum (अतिबला )



     Abutilon indicum (Indian abutilon, Indian mallow) is a small shrub in the Malvaceae family, native to tropic and subtropical regions and sometimes cultivated as an ornamental.

          It is found in Tamil Nadu, Uttar Pradesh, Uttarakhand, Haryana, Bihar and other area of India and Asia. It is a forest plant found in nearby road street, river bank and in forest.
Some time it is found on house outdoor near of durty drain, in fild or near of small pound but due to the lack of identification not posible to use it by general people.
  I was read the importsnce of Atibala in many time, and after search it, when first time I identify it then I was surprised!  beacuse its quantity was more then my idea on around. And I surprise also beacuse  people not able to identify as type of importent plant.
   In Ayurveda atibala is an important medicin. In Indian subresion known by many Name in different languages, that are-
      Name in different languages:
  • English name: Country mallow, Indian mallow
  • Hindi Name – kanghi, Kakahi
  • Sanskrit - Atibala
  • Kannada name – Tutti
  • Telugu name – Tutturu Benda, Duvvenakaya, Duvvena Kayalu
  • Tamil name – Perum Tutti, Paniyara Hutti,  துத்தி – thuthi
  • Bengali name – Petari, Jhapi
  • Marathi name – Mudra
  • Gujarati name – Khapat, Dabali, Kamsaki
  • Malayalam name – Vellula
  • Arabian name – masthul Gola
  • Farsi name – Darakhtashaan



     On the bases of Medical importance this plant is very useful. It is full of Antioxident , antidibetic and anti septic properity. Below is given medicinal properties along with the meaning.



  • Antioxidant: Seeds, Neutralize the oxidant effect of free radicals and other substances.
  • Anti-inflammatory: Leaves, Reducing inflammation by acting on body mechanisms.
  • Antifungal: Leaves, inhibit fungal infections.
  • Analgesic: Roots, Relieve pain.
  • Anti-convulsant: Leaves, Prevent or reduce the severity of epileptic fits or other convulsions.
  • Anti-diarrheal: Leaves, gives relief in diarrhoea.
  • Antidiabetic: Leaves, controls diabetes level.
  • Anti–estrogenic: Estrogen antagonist.
  • Demulcent: Seeds-Leaves, Relieving inflammation or irritation.
  • Diuretic: Seeds-Root extract, Promoting excretion of urine/agent that increases the amount of urine excreted.
  • Hepatoprotective: Whole plant, Prevent damage to the liver.
  • Hypoglycemic: Leaves, Reducing level of the sugar glucose in the blood.
  • Immunomodulatory: Leaves, Modifies the immune response or the functioning of the immune system.
  • Laxative: Seed-Leaves, Tending to stimulate or facilitate evacuation of the bowels.
  • Lipid lowering: Leaves, lowers lipid


 .    The major chemical constitute are -
Hescoses, nn-alkane mixtures, alkanols, B sitasterol, Vanilllic, p-coumaric, acceic, fumaric and amino acids, alantaolactone, iso alantolactone etc
          This plant is often used as a medicinal plant and is considered invasive on certain tropical islands.Its roots and leaves are used for curing fever.
     Acharya Charak gave extract of whole plant for fever, weakness and joint problems. It was used as Rasayan to promote health and keep diseases at bay. It treats wounds, ulcers and vaginal infections.
Root and bark are used as aphrodisiac, anti-diabetic, nervine tonic, and diuretic. They have diuretic and anthelmintic properties. The roots reduces fever, nerves weakness and helps in urinary problems. They are given for neurological disorders (hemiplegia, facial paralysis, sciatica) and debility.


Leaves are astringent and stop Bleeding and are helpful in bleeding piles, diarrhea etc.



Seeds are very nutritive and strengthening. They are aphrodisiac, emollient and demulcent. They contain about 30 % protein of good quality. They are used for treating impotency, loss of semen (spermatorrhoea) and low libido. The seeds are also used in urinary disorders, as a laxative in piles and in the treatment of cough.

Atibala is a Sheet Virya herb. Sheet Virya or Cool potency herb, subdues Pitta (Bile) Vata (Wind) and increases Kapha (Mucus). Sheet Virya herb gives nourishment to body and steadiness. It supports building of body fluids.


Atibala roots are used in Ayurveda for treatment of bleeding disorders (Raktapitta), gout (Vatahar) and urinary disorders (Meha).



Atibala is a nourishing, strength promoting with Rasayana and fetal growth promoting action. A study was done to find role of Atibala (abutilon indicum) in garbha sthapaka and garbha vruddhikara prabhava in pregnant women with history of repeated abortion by Department of Kaumarabritya Prasuti Stree Roga Institute of Post Graduate Teaching and Research Gujarat Ayurved University Jamnagar.



The study was designed to find out the effect of Atibala as a single drug for Garbhasthapaka prabhava and Garbha vruddhikara prabhava in pregnancy with repeated abortion history. Sixty pregnant women of second and third trimester were included and they were divided into two groups. 

The effect of Atibala was compared to that of combination of Amalaki, Godanthi and Garbhapalarasa (Amalaki group). Studying results of Atibala and Amalaki groups during the treatment or after no abortion took place.
The study concluded Ati Bala (Abutilon indicum) powder is highly effective for fetal development in compared with powder of Amalaki, Godanthi Bashma and Garbhapala rasa in pregnant women who have previous repeated abortions due to Garbhasthapaka (beneficial for maintenance of pregnancy) and Garbha Vriddhikara Prabhava (Promote fetal development).
Important Formulations
Atibala is generally as used an ingredient in preparation of Ayurvedic medicated oil used externally for massaging in Vatavyadhi (diseases due to Vata dosha) such as gout, rheumatism, facial palsy, paraplegia etc.
  • Bala Taila
  • Narayan Taila
  • Mahanarayan Taila



I Give you some picture of atibala for identified it.
Thank you

Thursday, September 20, 2018

जिंदगी

                                           जिंदगी
क्या है जिंदगी ― जिंदगी एक खेल है जिस खेल के अनेक मतलब होते है।अपनो के लिए ही जीना जिंदगी नहीं है,उसके लिए जियों जिसे जरूरत हो तुम्हारी।हरेक इंसान अपने जिंदगी को अलग अलग तरह सर खर्च करता है।इस जिंदगी का सबसे बड़ा उसूल है खुशी जो आपको और महान बना देती है।इंसान को महान सबसे पहले अपने लिए बनना पड़ता है तभी वो पूरी दुनिया के लिए महान होता है,चाहे वो किसी भी क्षेत्र में क्यो न हो। लाख परेशानियां हो लेकिन उसको अपने चेहरे पर न के बराबर लाना ये भी एक पहलू है जिंदगी का क्योको अगर आप परेशान हो तो आपसे जुड़े लोग भी परेशान होंगे।इसीलिए अपने आत्म शक्ति को अपनी ताकत बनाओ जिससे लाख कमजोरी भी धुंए के बादल की तरह उड़ जाए।समय बदलता गया जीने की शैली भी बदली लेकिन मक़सद आज भी वही है क्योंकि जीने की शैली बदल जाने से जिंदगी नही बदलती बस एक तरीका अलग हो जाता है जीने का।कोई भगवान कहलाता है क्यो,क्योंकि भगवान वो होता है जो हमेशा सबको खुश राखे तभी तो बचपन से यही बताया जाता है कि सबके अंदर भगवान है कारण यही है कि अगर आप सबको अपने तरीके से खुश रखते है तो आप भी भगवान है।अपने अंदर के भगवान को पहचानना भी जिंदगी है इसके लिए आपको अनेक ऐसे कार्य करने होंगे जिससे किसी को ठेस न पहुँचे किसी की भावनाओं को आहत न पहुँचे। जिंदगी में कार्य बहोत जरूरी है क्योंकि कार्य से ही आपको शक्ति मिलेगी जो इस जीवन मे बहुत ज्यादा जरूरी है।

                              मैंने इस छोटे से लेख में अपनी मन की भावनाओं को प्रदर्शित किया है।अगर कोई त्रुटि हो या कोई बात जिसमे आप सुधार लाना चाहते हो कृपया जरूर बताएं जिसे की मैं इस छोटे से लेख को आपकी सोच आधार पर भी निर्धारण कर सकूं

धन्यवाद

Wednesday, September 12, 2018

मदार, आयुर्वेद का वरदान

नमस्कार दोस्तो 
मैं बाहर हर्बल गार्डन में स्टूडेंट्स को पोधो के औषधीय विशेषता के बारे में बातें कर रहा था लेकिन अचानक मेरी नज़र मदार( Calotropis gigantea) के plant पर गई ओर गाव में सुनी हुइ ओर किसी टोने वाली किताब में पढ़ी हुइ बातें याद आ गयी! अक्षर लगभग लोग मदार के पेड़ के बारे में अन्धविश्वास वाली बातें करते पाए जाते हैं l कुछ लोग इसे भूतिया मानते हैं तो कुछ जहर का पेड़ बताते हैं l तांत्रिक लोग उसे तंत्र मंत्र से संबन्धित मानकर टोने करते है,तो सकारात्मक लोग उसे लक्ष्मी से संबन्धित मानकर घर पर लगाते हैं हालाँकि बहुत कम लोग इसके औषधीय गुनो के बारे में बातें करते हैं या जानते हैं  इनमें कुछ पुराने लोग या वैध हो सकते हैं l
एक तांत्रिक से बात करने के दोरान पता चला की मदार की 40 दिनों तक उसकी बतायी हुइ विधि से पूजा करने पर बेताल सिद्धि को पाया जा सकता हैं सुनकर हँसी तो बहुत आयी लेकिन पता भी चल गया कि क्यो इसको लेकर लोगो में भ्रान्ति फैली हुइ हैं
हालांकि मेरा जुड़ाव पौराणिक ग्रंथो से रहा हैं,  और गरुड़ पुराण में आयुर्वेद खण्ड में अच्छी खासी जानकारी प्राप्त हो  गयी थी साथ ही मेडिकल प्रोफ़ेशनल होने के नाते experiment भी हो गया l madar या  आक का  Antielargic effect  को देखकर तो में अचंबित रह गया यह 4 से 10 साल पुराने चार्म रोग को ठीक करने में भी सक्ष्म हैं लेकिन लोग इसके गुण को न जानकर केवल इसे टोने से connect कर देते हैं Pharmacognocy (कच्ची औषधि का अध्ययन)  पुस्तक में इसके औषधीय गुण को देखकर में सोचता रह गया कि ये लोग इससे अंजान क्यो हैं l ख़ैर छोड़िये कभी में भि इनमें से एक था और अब तक होता शायद l लेकिन आप सोच रहे होगे कि आख़िर मदार का आख़िर क्या पर्योग हो सकता हैं ,तो बताते हैं
प्रकार
ये मुख्यत 3 प्राकार का हो सकता हैं
रक्तार्क:  इसके पुष्प बाहर से श्वेत रंग के छोटे कटोरीनुमा और भीतर लाल और बैंगनी रंग की चित्ती वाले होते हैं। इसमें दूध कम होता है।
श्वेतार्क : इसका फूल लाल आक से कुछ बड़ा, हल्की पीली आभा लिये श्वेत करबीर पुष्प सदृश होता है। इसकी केशर भी बिल्कुल सफेद होती है। इसे 'मंदार' भी कहते हैं। यह प्रायः मन्दिरों में लगाया जाता है। इसमें दूध अधिक होता है।
राजार्क : इसमें एक ही टहनी होती है, जिस पर केवल चार पत्ते लगते है, इसके फूल चांदी के रंग जैसे होते हैं, यह बहुत दुर्लभ जाति है।
आक के पीले पत्ते पर घी चुपड कर सेंक कर अर्क निचोड कर कान में डालने से आधा शिर दर्द जाता रहता है। बहरापन दूर होता है। दाँतों और कान की पीडा शाँत हो जाती है।
आक के कोमल पत्ते मीठे तेल में जला कर अण्डकोश की सूजन पर बाँधने से सूजन दूर हो जाती है।
कडुवे (mustard oil)  तेल में पत्तों को जला कर गरमी के घाव पर लगाने से घाव अच्छा हो जाता है।
पत्तों पर कत्था चूना लगा कर पान समान खाने से दमा रोग दूर हो जाता है। तथा हरा पत्ता पीस कर लेप करने से सूजन पचक जाती है।
पत्तों के धूँआ से बवासीर शाँत होती है। आक का दूध बवासीर के मस्सों पर लगाने से मस्से जाते रहते हैं।
आक के पत्तों को गरम करके बाँधने से चोट अच्छी हो जाती है। सूजन दूर हो जाती है।
आक के फूल को जीरा, काली मिर्च के साथ बालक को देने से बालक की खाँसी दूर हो जाती है। (दूध पीते बालक को माता अपनी दूध में दे)
मदार के फल की रूई रूधिर बहने के स्थान पर रखने से रूधिर बहना बन्द हो जाता है।
 आक का दूध पाँव के अँगूठे पर लगाने से दुखती हुई आँख अच्छी हो जाती है।

आक के दूध का फाहा लगाने से मुँह का लक्वा में आराम हो जाता है।
 आक की छाल को पीस कर घी में भूने फिर चोट पर बाँधे तो चोट की सूजन दूर हो जाती है।
आक जड को दूध में औटा कर घी निकाले वह घी खाने से नहरूआँ ( फोड़l) रोग जाता रहता है।
आक की जड छाया में सुखा कर पीस लेवे और उसमें गुड मिलाकर खाने से शीत ज्वर शाँत हो जाता है
आक की जड 2 सेर लेकर उसको चार सेर पानी में पकावे जब आधा पानी रह जाय तब जड निकाल ले और पानी में 2 सेर गेहूँ छोडे जब जल नहीं रहे तब सुखा कर उन गेहूँओं का आटा पिसकर पावभर आटा की बाटी या रोटी बनाकर उसमें गुड और घी मिलाकर प्रतिदिन (21 दिन कम से कम) खाने से  पुरानी गठिया  दूर हो जाती हैं l
आक की जड के चूर्ण में काली मिर्च पिस कर मिलावे और रत्ती -रत्ती भर की गोलियाँ बनाये इन गोलियों को खाने से खाँसी दूर होती है।
आक की जड के छाल के चूर्ण में अदरक का अर्क और काली मिर्च पीसकर मिलावे और 2-2 रत्ती भर की गोलियाँ बनावे इन गोलियों से हैजा रोग दूर होता है।

आक की जड के लेप से बिगडा हुआ फोडा अच्छा हो जाता है।
आक की जड की चूर्ण 1 माशा तक ठण्डे पानी के साथ खाने से प्लेग होने का भय नहीं रहता।
आक की जड का चूर्ण दही के साथ खाने से स्त्री के प्रदर रोग दूर होता है।
आक की जड का चूर्ण 1 तोला, पुराना गुड़ 4 तोला, दोनों की चने की बराबर गोली बनाकर खाने से कफ की खाँसी अच्छी हो जाती है।
आक की जड का चूर्ण का धूँआ पीकर ऊपर से बाद में दूध गुड पीने से श्वास बहुत जल्दी अच्छा हो जाता है।
आक का दातून करने से दाँतों के रोग दूर होते हैं।
आक की जड का चूर्ण 1 माशा तक खाने से शरीर का शोथ (सूजन) अच्छा हो जाता है।
आक की जड 5 तोला, असगंध 5 तोला, बीजबंध 5 तोला, सबका चूर्ण कर गुलाब के जल में खरल कर सुखावे इस प्रकार 3 दिन गुलाब के अर्क में घोटे बाद में इसका 1 माशा चूर्ण शहद के साथ चाट कर ऊपर से दूध पीवे तो प्रमेह रोग जल्दी अच्छा हो जाता है।
 आक का दूध लगाने से ऊँगलियों का सडना दूर होता है।

आप को ये जानकारी केसी लगी बताना जरुर
अब आप से फिर मिलेगे अगले post में एक नए विषय के साथ l
धन्यवाद! 

Karma

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